जब जब ये सावन आया है। अँखियाँ छम छम सी बरस गई।
सितंबर 13, 2018 ・0 comments
जब जब ये सावन आया है।
अँखियाँ छम छम सी बरस गई।
अँखियाँ छम छम सी बरस गई।
तेरी यादों की बदली से।
मेरी ऋतुएँ भी थम सी गई ।
मेरी ऋतुएँ भी थम सी गई ।
घनघोर घटा सी याद तेरी ।
जो छाते ही अकुला सी गई ।
जो छाते ही अकुला सी गई ।
पपिहे सा व्याकुल मन मेरा।
और बंजर धरती सी आस मेरी।
और बंजर धरती सी आस मेरी।
कोई और ही हैं...
जो मदमाते हैं।
सावन में 'रस' से,
भर जाते हैं ।
जो मदमाते हैं।
सावन में 'रस' से,
भर जाते हैं ।
मैं तुमसे कहाँ कभी रीती हूँ ।
एक पल में सदियाँ जीती हूँ।
एक पल में सदियाँ जीती हूँ।
मन आज भी मेरा तरसा है।
बस नयन मेघ ही बरसा है।।
बस नयन मेघ ही बरसा है।।
मन आज भी मेरा तरसा है।
बस नयन मेघ ही बरसा है।।
बस नयन मेघ ही बरसा है।।
डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी
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