रविवार, 4 सितंबर 2016

अहसास

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था । उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था ।

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था । वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था ।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी । वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा । परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था । ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था । पर, कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था ।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया । वह बादशाह के पास गया और बोला - "सरकार ! अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ ।" 

बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी । दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया । 

कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा । उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे । कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया ।वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया । नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ । 

बादशाह ने दार्शनिक से पूछा - "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था, अब देखो कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला -
"खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है । इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी ।"

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

नजर

एक बार दो दोस्त एक आम के बगीचे से गुज़र रहे थे की उन्होंने देखा के कुछ बच्चे एक आम के पेड़ के नीचे खड़े हो कर पत्थर फेंक कर आम तोड़ रहे हैं।

ये देख कर दोस्त बोला कि देखो कितना बुरा दौर आ गया कि पेड़ भी पत्थर खाए बिना आम नही दे रहा है।

तो दुसरे दोस्त ने कहा "नहीं दोस्त* तु गलत देख रहा है... ,दौर तो बहुत अच्छा है की पत्थर खाने के बावजुद भी पेड़  आम दे रहा है।

दिल में ख़यालात अच्छे हो तो सब चीज अच्छी नज़र आती है, और सोच बुरी हो तो बुराई ही बुराई नज़र आती है ।नियत साफ है तो नजरिया और नज़ारे खुद ब खुद बदल जाते है।

                        

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

संघर्ष ही जीवन है

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"संघर्ष ही जीवन है"

एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज रहता था !
कभी बाढ़ आ जाये,
कभी सूखा पड़ जाए,
कभी धूप बहुत तेज हो जाए,
तो कभी ओले पड़ जाये!
हर बार कुछ न कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाया करती थी !

एक  दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा -
देखिये प्रभु, आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है, आपको खेती-बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है।

एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये,
जैसा मैं चाहूं वैसा मौसम हो,
फिर आप देखना मैं कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा!

परमात्मा मुस्कुराये और कहा- ठीक है,
जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम  दूंगा,
मैं दखल नहीं करूँगा! जैसा तुम चाहो।

किसान ने गेहूं की फ़सल बोई,
जब धूप चाही, तब धूप  मिली, जब पानी चाहा, तब पानी !
तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी को तो उसने आने ही नहीं दीया।

समय के साथ फसल बढ़ी,
और किसान की ख़ुशी भी,
क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी !

किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को,
कि फ़सल कैसे करते हैं,

बेकार ही इतने बरस हम किसानों को परेशान करते रहे।

फ़सल काटने का समय भी आया,
किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया,
लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा,
एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया!

"गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था"

सारी बालियाँ अन्दर से खाली थीं।

बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा - प्रभु ये क्या हुआ ?

तब परमात्मा बोले -
ये तो होना ही था,
तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया।
न तेज धूप में उनको तपने दिया, न आंधी ओलों से जूझने दिया,

उनको  किसी प्रकार की चुनौती  का अहसास जरा भी नहीं होने दिया,
इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए,
जब आंधी आती है,
तेज बारिश होती है,
ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है,
"वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है"
और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वही उसे शक्ति देता है, ऊर्जा देता है,
उसकी जीवटता को उभारता है।

उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष न हो, चुनौती न हो, तो इन्सान खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनौतियाँ ही हैं जो इन्सान रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनौतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे।

सोमवार, 30 मई 2016

दुष्ट सर्प


एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड था। उस पेड पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोडा रहता था। उसी पेड के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहना लगा। हर वर्ष मौसल आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौका पाकर उनके घोंसले में जाकर अंडे खा जाता। एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अपने घोंसले में रखे अंडों पर झपट्ते देखा।
अंडे खाकर सर्प चला गया कौए ने कव्वी को ढाडस बंधाया “प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।”
कौए ने काफी सोचा विचारा और पहले वाले घोंसले को छोड उससे काफी ऊपर टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा “यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड की चोटी के किनारे निकट हैं और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।”
कौवे की बात मानकर कव्वी ने नए घोंसले में अंडे सुरक्षित रहे और उनमें से बच्चे भी निकल आए।
उधर सर्प उनका घोंसला खाली देखकर यह समझा कि कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से चले गए हैं पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड से उडते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला उसी पेड पर ऊपर बना रखा हैं। एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया।
घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा।
कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला खाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख से फटने लगी। कव्वी बिलख उठी “तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे?”
कौआ बोला “नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या हैं पर यहां से भागना ही उसका हल नहीं हैं। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें लोमडी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।”
दोनों तुरंत ही लोमडी के पास गए। लोमडी ने अपने मित्रों की दुख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू पोंछे। लोमडी ने काफी सोचने के बाद कहा “मित्रो! तुम्हें वह पेड छोडकर जाने की जरुरत नहीं हैं। मेरे दिमाग में एक तरकीब आ रही हैं, जिससे उस दुष्टसर्प से छुटकारा पाया जा सकता हैं।”
लोमडी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई। लोमडी की तरकीब सुनकर कौआ-कव्वी खुशी से उछल पडें। उन्होंने लोमडी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आए। अगले ही दिन योजना अमल में लानी थी। उसी वन में बहुत बडा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीडा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे।
इस बार राजकुमारी आई और सरोवर में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उडता हुआ वहां आया। उसने सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपडों व आभूषणों पर नजर डाली। कपडे से सबसे ऊपर था राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार।
कौए ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया। जब सबकी नजर उसकी ओर घूमी तो कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड गया। सभी सहेलियां चीखी “देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा हैं।”
सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उडता जा रहा था। सैनिक उसी दिशा में दौडनेलगे। कौआ सैनिकों को अपने पीचे लगाकर धीरे-धीरे उडता हुआ उसी पेड की ओर ले आया। जब सैनिक कुच ही दूर रह गए तो कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा।
सैनिक दौडकर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका। उसने वहां हार और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुडंली मारे देखा। वह चिल्लाया “पीछे हटो! अंदर एक नाग हैं।” सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।
सीखः बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता हैं।

सोमवार, 23 मई 2016

नकल करना बुरा है


एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
एक दिन कौए ने सोचा, ‘वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर पकड़ लूंगा।’
दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता। खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया। कौआ अपनी हीं झोंक में उस चट्टान से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गईं और उसने वहीं तड़प कर दम तोड़ दिया।
शिक्षा
नकल करने के लिए भी अकल चाहिए।

रविवार, 22 मई 2016

विश्वास

“Men of genius are admired, men of wealth are envied, men of power are feared; but only men of character are trusted.” 
“बुद्धिमान व्यक्तियों की प्रंशसा की जाती है; धनवान व्यक्तियों से ईर्ष्या की जाती है; बलशाली व्यक्तियों से डरा जाता है, लेकिन विश्वास केवल चरित्रवान व्यक्तियों पर ही किया जाता है।”