रविवार, 27 नवंबर 2016

सावधान


प्रतिभा ईश्वर से मिलती है,
नतमस्तक रहें..!

ख्याति समाज से मिलती है,
आभारी रहें..!

मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से मिलते हैं,
सावधान रहें..!!

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

स्वंय को ऐसा बनाओ ....

स्वंय को ऐसा बनाओ जहाँ तुम हो, वहाँ तुम्हें सब प्यार करें,
जहाँ से तुम चले जाओ, वहाँ तुम्हें सब याद करें,
जहाँ तुम पहुँचने वाले हो, वहाँ सब तुम्हारा इंतज़ार करें।

Positive attitude


🙏बहुत शानदार,जानदार सीख🙏
एक घर के पास काफी दिन एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था।
वहा रोज मजदुरोंके छोटे बच्चे एकदुसरोंकी शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेलते थे।

रोज कोई इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे...

इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल  जाते,
पर...
केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए गार्ड बनता था।

उनको रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने  कौतुहल से गार्ड बननेवाले बच्चे को बुलाकर पुछा,

"बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?"

इस पर वो बच्चा बोला...

"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पिछले वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे? और मेरे पिछे कौन खड़ा रहेगा?

इसिलए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हुँ।

"ये बोलते समय मुझे उसके आँखों में पानी दिखाई दिया।

आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया...

अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उस में कोई न कोई कमी जरुर रहेगी।

वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। वैसे न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।

हम कितना रोते है?
कभी अपने साँवले रंग के लिए, कभी छोटे क़द के लिए, कभी पड़ौसी की कार, कभी पड़ोसन के गले का हार, कभी अपने कम मार्क्स, कभी अंग्रेज़ी, कभी पर्सनालिटी, कभी नौकरी मार तो कभी धंदे में मार...

हमें इससे बाहर आना पड़ता है।

ये जीवन है... इसे ऐसे ही जीना पड़ता है

lets be positive

रविवार, 20 नवंबर 2016

प्रशंसा से बहका मनुष्य

एक मूर्तिकार बढ़िया-बढ़िया मुर्तिया बनाता था। किसी ज्योतिष ने उसे बताया की तुम्हारी जिन्दगी थोड़ी सी हैं केवल महीने भर की आयु बाकी हैं, मूर्तिकार चिंतित हुआ वह चिंता में डूब गया उसने एक संत ये यहाँ दस्तक दी, संत के चरणों में खूब रोया और मृत्यु से बचा लेने की प्रार्थना की।

संत ने पूछा तुम क्या करते हो ? उसने जबाब दिया मूर्तिकार हूँ, मुर्तिया बनाता हूँ। संत ने उसे उपाय सुझाया तुम अपनी जैसी शक्ल की आठ मुर्तिया बनाओ। मुर्तिया हू- ब- हू तुम्हारे जैसी ही होनी चाहिए, सो जिस दिन मृत्यु का बात आये, उस दिन सब को एक से वस्त्र पहना कर लाइन में खड़ा कर देना और इनके बीचो बीच में तुम स्वयं खड़े हो जाना तथा जैसे ही यमदूत तुमको लेने आये तो तुम एक मिनट के लिए अपनी साँस रोक लेना।

यमदूत तुमको पहचान नहीं पायेंगे, और इस तरह वे तुम्हे छोड़ कर चले जायेगे तथा तुम्हरी मृत्यु की घडी टल जायेगी। मूर्तिकार ने ऐसा ही किया मृत्यु के दिन यमदूत उसे लेने आए यमदूतो ने देखा कि एक जैसे नौ आदमी खड़े हैं। मुश्किल में पड़ गए इसमें असली कौन हैं और नकली कौन हैं, मालूम ही नहीं पड़ रहा और बेचारे यमदूत खाली हाथ ही लौट गए।

यमलोक जाकर यमराज से शिकायत की वहां नौ लोग खड़े हैं समझ में नहीं आता किसको लाना हैं। यमराज ने भी सुना तो उसे भी आश्चर्य हुआ क्यों कि पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ यमराज ने सोचा, मृत्युलोक में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जो एक जैसे अनेक व्यक्ति बनाने लगा हैं। यमराज जी ने ब्रह्मा जी को बुलवाया और पूछा ये क्या मामला हैं ? एक जैसी शक्ल के नौ- नौ आदमी ?

यमदूत पेशोपेश में हैं कि कौन असली हैं और कौन नकली, लेकर किसको जाना हैं यह कैसा तमाशा हैं ? ब्रह्मा जी ने देखा तो उनका भी सर चकराया, ब्रह्मा जी बोले मैंने तो पूरी पृथ्वी पर एक जैसे दो आदमी नहीं बनाये, लगता हैं सचमुच में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जिसने एक जैसे दो नहीं बल्कि नौ- नौ आदमीं बना दिए हैं। ब्रह्मा जी बोले मामला जटिल हैं इसका निपटारा विष्णु जी कर सकते हैं।

विष्णु जी को बुलवाया गया विष्णु जी ने सभी मूर्तियों की परिक्रमा की, उन्हें ध्यान से देखा तो असली बात समझ में आ गई। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा - प्रभु क्या कमाल की कला हैं क्या सुन्दर और सजीव मुर्तिया बनायीं हैं जिसने यह मुर्तिया बनायीं हैं अगर मुझे मिल जाए तो में स्वयं उसका अभिनन्दन करूँगा, मैं स्वयं उसकी कला को पुरस्कृत करूँगा।

विष्णु द्वारा इतनी प्रशंसा सुननी थी कि बीच की मूर्ति (जिसमे स्वयं मूर्तिकार था) बोल पड़ी - प्रभु मैंने ही बनायीं हैं, मैं ही मूर्तिकार हूँ । विष्णु जी ने उसका कान पकड़ा और कहा - चल निकल बाहर हम तुझे ही खोज रहे थे और यमदूत पकड़कर उसे अपने साथ ले गए।

इसलिए, यहाँ इस धरती पर हर आदमी अपनी जरा सी प्रशंसा भर से बहक जाता हैं। प्रशंसा में फूल जाना और अपनी औकात को भूल जाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी हैं, कोई आपकी कितनी भी तारीफ करे तो आपको जरा सावधान रहना चाहिए क्योंकि हो सकता है वह ही आपके लिए कोई जाल तैयार कर रहा हो। जीवन में हमेशा संयम बरते और ध्यान रखे ।

रविवार, 30 अक्तूबर 2016

द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए

गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिये गाय भेंट की है।
गुरू ने कहा अच्छा हुआ । दूध पीने को मिलेगा।
एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया ।
गुरू ने कहा - अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली ।
'परिस्थिति'  बदले तो अपनी 'मनस्थिति' बदल लो , बस दुख सुख में बदल जायेगा।
"सुख और दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं।
"अंधे को मंदिर आया देखलोग हँसकर बोले -"मंदिर में दर्शन के लिए आए तो हो , पर क्या भगवान को देख पाओगे ? "
अंधे ने कहा  - " क्या फर्क पड़ता है , मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा . .

"द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए" ।

गुरुवार, 15 सितंबर 2016

*REMAIN HUMBLE AND GRATEFUL*

A rich man looked through his window and saw a man picking something from his dustbin. He said, Thank God I'm not poor.

The poor man looked around and saw a naked man misbehaving on the street. He said, Thank God I'm not mad.

The mad man looked ahead and saw an ambulance carrying a patient. He said, Thank God am not sick.

Then a sick person in hospital saw a trolley taking a dead body to the mortuary. He said, Thank God I'm not dead.

Only a dead person cannot thank God. Why don't you thank God today for giving you the opportunity to live another day?

Would you share with someone else, and let them know that God loves them too?

*LIFE:*
To understand it better, you have to go to 3 locations:

1. Hospital,
2. Prison &
3. Cemetery.

*At the Hospital*, you will understand that nothing is more beautiful than HEALTH.

*In the Prison*, you'll see that FREEDOM is the most precious thing.

*At the Cemetery*, you will realize that life is worth nothing. The ground that we walk today will be our roof tomorrow.

*Let us, therefore, remain humble and be grateful for everything.*

रविवार, 4 सितंबर 2016

अहसास

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था । उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था ।

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था । वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था ।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी । वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा । परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था । ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था । पर, कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था ।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया । वह बादशाह के पास गया और बोला - "सरकार ! अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ ।" 

बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी । दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया । 

कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा । उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे । कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया ।वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया । नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ । 

बादशाह ने दार्शनिक से पूछा - "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था, अब देखो कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला -
"खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है । इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी ।"