शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

A Beautiful story!!

A man often bought oranges from an old lady.
After they were weighed, paid for and put in his bag, he would always pick one from his bag, peel it, put a segment in his mouth, complain it's sour and pass on the orange to the seller.
The old lady would put one segment in her mouth and retort, "why, it's sweet," but by then he was gone with his bag.
His wife, always with him, asked, "the oranges are always sweet, then why this drama every time?"
He smiled, "the old mother sells sweet oranges but never eats them herself. This way I get her to eat one, without losing her money. That's all."
The vegetable seller next to the old lady, saw this everyday.
She chided, "every time this man fusses over your oranges, and I see that you always weigh a few extra for him. Why?"
The old lady smiled, "I know he does this to feed me an orange, only, he thinks I don't understand. I never weigh extra. His love tilts the scale slightly every time."
Life's joys are in these sweet little gestures of love and respect for our fellow beings.
O God, Grant us always the ability to show such amazing kindness and Gestures 😊

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

THE JOURNEY IS SO SHORT

A young lady sat in a public transport. An old grumpy lady came and sat by her side as she bumped into her with her numerous bags. The person sitting on the other side of her got upset, asking the young lady why she did not speak up and say something.

The young lady responded with a smile: "It is not necessary to be rude or argue over something so insignificant, the journey together is so short. I get off at the next stop."

The response deserves to be written in golden letters in our daily behaviour and everywhere:

*It is not necessary to argue over something so insignificant, our journey together is so short*

If each one of us could realize that our passage down here has such a short duration; to darken it with quarrels, futile arguments, not forgiving others, ingratitude and bad attitudes would be a waste of time and energy.

Did someone break your heart? Be calm, the journey is so short..

Did someone betray, bully, cheat or humiliate you? Be calm, forgive, the journey is so short..

Whatever penalty anyone serves us, let's remember that our journey together is so short..

Let us therefore be filled with gratitude and sweetness. Sweetness is a virtue never likened to bad character nor cowardice, but better likened to greatness.

Our journey together down here is really short and cannot be reversed...
No one knows the duration of his journey.

No one knows if he will have to alight at the next stop..

Let us therefore cherish and hold on to friends and family! Let us be calm, respectful, kind, thankful and forgiving to each other. If I've hurt you, I ask your forgiveness. But please remember: The journey down here is so short.

रविवार, 27 नवंबर 2016

नजरिया और नज़ारे

एक बार दो दोस्त एक आम के बगीचे से गुज़र रहे थे की उन्होंने देखा के कुछ बच्चे एक आम के पेड़ के नीचे खड़े हो कर पत्थर फेंक कर आम तोड़ रहे हैं।
ये देख कर दोस्त बोला कि देखो कितना बुरा दौर आ गया कि पेड़ भी पत्थर खाए बिना आम नही दे रहा है।
तो दुसरे दोस्त ने कहा "नहीं दोस्त* तु गलत देख रहा है... ,दौर तो बहुत अच्छा है की पत्थर खाने के बावजुद भी पेड़ आम दे रहा है।
दिल में ख़यालात अच्छे हो तो सब चीज अच्छी नज़र आती है, और सोच बुरी हो तो बुराई ही बुराई नज़र आती है ।नियत साफ है तो नजरिया और नज़ारे खुद ब खुद बदल जाते है।

सावधान


प्रतिभा ईश्वर से मिलती है,
नतमस्तक रहें..!

ख्याति समाज से मिलती है,
आभारी रहें..!

मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से मिलते हैं,
सावधान रहें..!!

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

स्वंय को ऐसा बनाओ ....

स्वंय को ऐसा बनाओ जहाँ तुम हो, वहाँ तुम्हें सब प्यार करें,
जहाँ से तुम चले जाओ, वहाँ तुम्हें सब याद करें,
जहाँ तुम पहुँचने वाले हो, वहाँ सब तुम्हारा इंतज़ार करें।

Positive attitude


🙏बहुत शानदार,जानदार सीख🙏
एक घर के पास काफी दिन एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था।
वहा रोज मजदुरोंके छोटे बच्चे एकदुसरोंकी शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेलते थे।

रोज कोई इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे...

इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल  जाते,
पर...
केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए गार्ड बनता था।

उनको रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने  कौतुहल से गार्ड बननेवाले बच्चे को बुलाकर पुछा,

"बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?"

इस पर वो बच्चा बोला...

"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पिछले वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे? और मेरे पिछे कौन खड़ा रहेगा?

इसिलए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हुँ।

"ये बोलते समय मुझे उसके आँखों में पानी दिखाई दिया।

आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया...

अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उस में कोई न कोई कमी जरुर रहेगी।

वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। वैसे न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।

हम कितना रोते है?
कभी अपने साँवले रंग के लिए, कभी छोटे क़द के लिए, कभी पड़ौसी की कार, कभी पड़ोसन के गले का हार, कभी अपने कम मार्क्स, कभी अंग्रेज़ी, कभी पर्सनालिटी, कभी नौकरी मार तो कभी धंदे में मार...

हमें इससे बाहर आना पड़ता है।

ये जीवन है... इसे ऐसे ही जीना पड़ता है

lets be positive

रविवार, 20 नवंबर 2016

प्रशंसा से बहका मनुष्य

एक मूर्तिकार बढ़िया-बढ़िया मुर्तिया बनाता था। किसी ज्योतिष ने उसे बताया की तुम्हारी जिन्दगी थोड़ी सी हैं केवल महीने भर की आयु बाकी हैं, मूर्तिकार चिंतित हुआ वह चिंता में डूब गया उसने एक संत ये यहाँ दस्तक दी, संत के चरणों में खूब रोया और मृत्यु से बचा लेने की प्रार्थना की।

संत ने पूछा तुम क्या करते हो ? उसने जबाब दिया मूर्तिकार हूँ, मुर्तिया बनाता हूँ। संत ने उसे उपाय सुझाया तुम अपनी जैसी शक्ल की आठ मुर्तिया बनाओ। मुर्तिया हू- ब- हू तुम्हारे जैसी ही होनी चाहिए, सो जिस दिन मृत्यु का बात आये, उस दिन सब को एक से वस्त्र पहना कर लाइन में खड़ा कर देना और इनके बीचो बीच में तुम स्वयं खड़े हो जाना तथा जैसे ही यमदूत तुमको लेने आये तो तुम एक मिनट के लिए अपनी साँस रोक लेना।

यमदूत तुमको पहचान नहीं पायेंगे, और इस तरह वे तुम्हे छोड़ कर चले जायेगे तथा तुम्हरी मृत्यु की घडी टल जायेगी। मूर्तिकार ने ऐसा ही किया मृत्यु के दिन यमदूत उसे लेने आए यमदूतो ने देखा कि एक जैसे नौ आदमी खड़े हैं। मुश्किल में पड़ गए इसमें असली कौन हैं और नकली कौन हैं, मालूम ही नहीं पड़ रहा और बेचारे यमदूत खाली हाथ ही लौट गए।

यमलोक जाकर यमराज से शिकायत की वहां नौ लोग खड़े हैं समझ में नहीं आता किसको लाना हैं। यमराज ने भी सुना तो उसे भी आश्चर्य हुआ क्यों कि पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ यमराज ने सोचा, मृत्युलोक में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जो एक जैसे अनेक व्यक्ति बनाने लगा हैं। यमराज जी ने ब्रह्मा जी को बुलवाया और पूछा ये क्या मामला हैं ? एक जैसी शक्ल के नौ- नौ आदमी ?

यमदूत पेशोपेश में हैं कि कौन असली हैं और कौन नकली, लेकर किसको जाना हैं यह कैसा तमाशा हैं ? ब्रह्मा जी ने देखा तो उनका भी सर चकराया, ब्रह्मा जी बोले मैंने तो पूरी पृथ्वी पर एक जैसे दो आदमी नहीं बनाये, लगता हैं सचमुच में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जिसने एक जैसे दो नहीं बल्कि नौ- नौ आदमीं बना दिए हैं। ब्रह्मा जी बोले मामला जटिल हैं इसका निपटारा विष्णु जी कर सकते हैं।

विष्णु जी को बुलवाया गया विष्णु जी ने सभी मूर्तियों की परिक्रमा की, उन्हें ध्यान से देखा तो असली बात समझ में आ गई। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा - प्रभु क्या कमाल की कला हैं क्या सुन्दर और सजीव मुर्तिया बनायीं हैं जिसने यह मुर्तिया बनायीं हैं अगर मुझे मिल जाए तो में स्वयं उसका अभिनन्दन करूँगा, मैं स्वयं उसकी कला को पुरस्कृत करूँगा।

विष्णु द्वारा इतनी प्रशंसा सुननी थी कि बीच की मूर्ति (जिसमे स्वयं मूर्तिकार था) बोल पड़ी - प्रभु मैंने ही बनायीं हैं, मैं ही मूर्तिकार हूँ । विष्णु जी ने उसका कान पकड़ा और कहा - चल निकल बाहर हम तुझे ही खोज रहे थे और यमदूत पकड़कर उसे अपने साथ ले गए।

इसलिए, यहाँ इस धरती पर हर आदमी अपनी जरा सी प्रशंसा भर से बहक जाता हैं। प्रशंसा में फूल जाना और अपनी औकात को भूल जाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी हैं, कोई आपकी कितनी भी तारीफ करे तो आपको जरा सावधान रहना चाहिए क्योंकि हो सकता है वह ही आपके लिए कोई जाल तैयार कर रहा हो। जीवन में हमेशा संयम बरते और ध्यान रखे ।