कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान है, लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है। बहुत समय पहले की बात है।एक बार एक गुरु जी गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे।तभी एक राहगीर आया और उनसे पूछा, “ महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं, दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ? ” गुरु जी बोले, “ जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं? ” ” मत पूछिए महाराज, वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं .”, राहगीर बोला। गुरु जी बोले, “इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं…कपटी, दुष्ट, बुरे…” और इतना सुनकर राहगीर आगे बढ़ गया।कुछ समय बाद एक दूसरा राहगीर वहां से गुजरा।उसने भी गुरु जी से वही प्रश्न पूछा, “ मुझे किसी नयी जगह जाना है, क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ? ” ” जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ? ”, गुरु जी ने इस राहगीर से भी वही प्रश्न पूछा। “ जी वहां तो बड़े सभ्य, सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं. ”, राहगीर बोला। ” तुम्हे बिलकुल उसी