सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

मूर्ख बातूनी कछुआ


एक तालाब में एक कछुआ रहता था। उसी तलाब में दो हंस तैरने के लिए उतरते थे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। कछुए और उनमें दोस्ती हते देर न लगी। हंसो को कछुए का धीमे-धीमे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा। हंस बहुत ज्ञानी भी थे। वे कछुए को अदभुत बातें बताते। ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस तो दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए दूसरी जगहों की अनोखी बातें कछुए को बताते। कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता। बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। उन तीनों की घनिष्टता बढती गई। दिन गुजरते गए।
एक बार बडे जोर का सुखा पडा। बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा। उस तालाब का पानी सूखने लगा। प्राणी मरने लगे, मछलियां तो तडप-तडपकर मर गईं। तालाब का पानी और तेजी से सूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाब में खाली कीचड रह गया। कछुआ बडे संकट में पड गया। जीवन-मरण का प्रश्न खडा हो गया। वहीं पडा रहता तो कछुए का अंत निश्चित था। हंस अपने मित्र पर आए संकट को दूर करने का उपाय सोचने लगे। वे अपने मित्र कछुए को ढाडस बंधाने का प्रयत्न करते और हिम्म्त न हारने की सलाह देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे। वे दूर-दूर तक उडकर समस्या का हल ढूढते। एक दिन लौटकर हंसो ने कहा “मित्र, यहां से पचास कोस दूर एक झील हैं।उसमें काफी पानी हैं तुम वहां मजे से रहोगे।” कछुआ रोनी आवाज में बोला “पचास कोस? इतनी दूर जाने में मुझे महीनों लगेंगे। तब तक तो मैं मर जाऊंगा।”
कछुए की बात भी ठीक थी। हंसो ने अक्ल लडाई और एक तरीका सोच निकाला।
वे एक लकडी उठाकर लाए और बोले “मित्र, हम दोनों अपनी चोंच में इस लकडी के सिरे पकडकर एक साथ उडेंगे। तुम इस लकडी को बीच में से मुंह से थामे रहना। इस प्रकार हम उस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे उसके बाद तुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी।”
उन्होंने चेतावनी दी “पर याद रखना, उडान के दौरान अपना मुंह न खोलना। वरना गिर पडोगे।”
कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस, लकडी पकडकर हंस उड चले। उनके बीच में लकडी मुंह दाबे कछुआ। वे एक कस्बे के ऊपर से उड रहे थे कि नीचे खडे लोगों ने आकाश में अदभुत नजारा देखा। सब एक दूसरे को ऊपर आकाश का दॄश्य दिखाने लगे। लोग दौड-दौडकर अपने चज्जों पर निकल आए। कुछ अपने मकानों की छतों की ओर दौडे। बच्चे बूडे, औरतें व जवान सब ऊपर देखने लगे। खूब शोर मचा। कछुए की नजर नीचे उन लोगों पर पडी।
उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हें इतने लोग देख रहे हैं। वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और चिल्लाया “देखो, कितने लोग हमें देख रहे है!” मुंह के खुलते ही वह नीचे गिर पडा। नीचे उसकी हड्डी-पसली का भी पता नहीं लगा।
सीखः बेमौके मुंह खोलना बहुत महंगा पडता हैं।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

रंग में भंग


एक बार जंगल में पक्षियों की आम सभा हुई। पक्षियों के राजा गरुड थे। सभी गरुड से असंतुष्ट थे। मोर की अध्यक्षता में सभा हुई। मोर ने भाषण दिया “साथियो, गरुडजी हमारे राजा हैं पर मुझे यह कहते हुए बहुत दुख होता हैं कि उनके राज में हम पक्षियों की दशा बहुत खराब हो गई हैं। उसका यह कारण हैं कि गरुडजी तो यहां से दूर विष्णु लोक में विष्णुजी की सेवा में लगे रहते हैं। हमारी ओर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता। हमें अओअनी समस्याएं लेकर फरियाद करने जंगली चौपायों के राजा सिंह के पास जाना पडता हैं। हमारी गिनती न तीन में रह गई हैं और न तेरह में। अब हमें क्या करना चाहिए, यही विचारने के लिए यह सभा बुलाई गई हैं।
हुदहुद ने प्रस्ताव रखा “हमें नया राजा चुनना चाहिए, जो हमारी समस्याएं हल करे और दूसरे राजाओं के बीच बैठकर हम पक्षियों को जीव जगत में सम्मान दिलाए।”
मुर्गे ने बांग दी “कुकडूं कूं। मैं हुदहुदजी के प्रस्ताव का समर्थन करता हूं”
चील ने जोर की सीटी मारी “मैं भी सहमत हूं।”
मोर ने पंख फैलाए और घोषणा की “तो सर्वसम्मति से तय हुआ कि हम नए राजा का चुनाव करें, पर किसे बनाएं हम राजा?”।
सभी पक्षी एक दूसरे से सलाह करने लगे। काफी देर के बाद सारस ने अपना मुंह खोला “मैं राजा पद के लिए उल्लूजी का नाम पेश करता हूं। वे बुद्धिमान हैं। उनकी आंखें तेजस्वी हैं। स्वभाव अति गंभीर हैं, ठीक जैसे राजा को शोभा देता हैं।”
हार्नबिल ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा “सारसजी का सुझाव बहुत दूरदर्शितापूर्ण हैं। यह तो सब जानते हैं कि उल्लूजी लक्ष्मी देवी की सवारी है। उल्लू हमारे राजा बन गए तो हमारा दारिद्रय दूर हो जाएगा।”
लक्ष्मीजी का नाम सुनते ही सब पर जादू सा प्रभाव हुआ। सभी पक्षी उल्लू को राजा बनाने पर राजी हो गए।
मोर बोला “ठीक हैं, मैं उल्लूजी से प्रार्थना करता हूं कि वे कुछ शब्द बोलें।”
उल्लू ने घुघुआते कहा “भाइयो, आपने राजा पद पर मुझे बिठाने का निर्णय जो किया हैं उससे मैं गदगद हो गया हूं। आपको विश्वास दिलाता हूं कि मुझे आपकी सेवा करने का जो मौका मिला हैं, मैं उसका सदुपयोग करते हुए आपकी सारी समस्याएं हल करने का भरसक प्रयत्न करुंगा। धन्यवाद।”
पक्षि जनों ने एक स्वर में ‘उल्लू महाराज की जय’ का नारा लगाया।
कोयलें गाने लगी। चील जाकर कहीं से मनमोहक डिजाइन वाला रेशम का शाल उठाकर ले आई। उसे एक डाल पर लटकाया गया और उल्लू उस पर विराजमान हुए। कबूतर जाकर कपडों की रंगबिरंगी लीरें उठाकर लाए और उन्हें पेड की टहनियों पर लटकाकर सजाने लगे। मओरों की टोलियां पेड के चारों ओर नाचने लगी।
मुर्गों व शतुरमुर्गों ने पेड के निकट पंजो से मिट्टी खोद-खोदकर एक बडा हवन तैयार किया। दूसरे पक्षी लाल रंग के फूल ला-लाकर कुंड में ढेरी लगाने लगे। कुंड के चारों ओर आठ-दस तोते बैठकर मंत्र पढने लगे।
बया चिडियों ने सोने व चाण्दी के तारों से मुकुट बुन डाला तथा हंस मोती लाकर मुकुट में फिट करने लगे। दो मुख्य तोते पुजारियों ने उल्लू से प्रार्थना की “हे पक्षी श्रेष्ठ, चलिए लक्ष्मी मंदिर चलकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।”
निर्वाचित राजा उल्लू तोते पंडितों के साथ लक्ष्मी मंदिर के ओर उड चले उनके जाने के कुछ क्षण पश्चात ही वहां कौआ आया। चारों ओर जश्न सा माहोल देखकर वह चौंका। उसने पूछा “भाई, यहां किस उत्सव की तैयारी हो रही हैं?
पक्षियों ने उल्लू के राजा बनने की बात बताई। कौआ चीखा “मुझे सभा में क्यों नहीं बुलाया गया? क्या मैं पक्षी नहीं?”
मोर ने उत्तर दिया “यह जंगली पक्षियों की सभा हैं। तुम तो अब जाकर अधिकतर कस्बों व शहरों में रहने लगे हो। तुम्हारा हमसे क्या वास्ता?”
कौआ उल्लू के राजा बनने की बात सुनकर जल-भुन गया था। वह सिर पटकने लगा और कां-कां करने लगा “अरे, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया हैं, जो उल्लू को राजा बनाने लगे? वह चूहे खाकर जीता हैं और यह मत भूलो कि उल्लू केवल रात को बाहर निकलता हैं। अपनी समस्याएं और फरियाद लेकर किसके पास जाओगे? दिन को तो वह मिलेगा नहीं।”
कौए की बातों का पक्षियों पर असर होने लगा। वे आपस में कानाफूसी करने लगे कि शायद उल्लू को राजा बनाने का निर्णय कर उन्होंने गलती की हैं। धीरे-धीरे सारे पक्षी वहां से खिसकने लगे। जब उल्लू लक्ष्मी पूजन कार तोतों के साथ लौटा तो सारा राज्याभिषेक स्थल सूना पडा था। उल्लू घुघुआया “सब कहां गए?”
उल्लू की सेविका खंडरिच पेड पर से बोली “कौआ आकर सबको उल्टी पट्टी पढा गया। सब चले गए। अब कोई राज्याभिषेक नहीं होगा।”
उल्लू चोंच पीसकर रह गया। राजा बनने का सपना चूर-चूर हो गया तब से उल्लू कौओं का बैरी बन गया और देखते ही उस पर झपटता हैं।
सीखः कई में दूसरों के रंग में भंग डालने की आदत होती हैं और वे उम्र-भर की दुश्मनी मोल ले बैठते हैं।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

रंगा सियार


एक बार की बात हैं कि एक सियार जंगल में एक पुराने पेड के नीचे खडा था। पूरा पेड हवा के तेज झोंके से गिर पडा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता-घिसटता अपनी मांद तक पहुंचा। कई दिन बाद वह मांद से बाहर आया। उसे भूख लग रही थी। शरीर कमजोर हो गया था तभी उसे एक खरगोश नजर आया। उसे दबोचने के लिए वह झपटा। सियार खुछ दूर भागकर हांफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहां रह गई थी? फिर उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की। यहां भी वह असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हुई। वह खडा सोचने लगा। शिकार वह कर नहीं पा रहा था। भूखों मरने की नौबत आई ही समझो। क्या किया जाए? वह इधर उधर घूमने लगा पर कहीं कोई मरा जानवर नहीं म्मिला। घूमता-घूमता वह एक बस्ती में आ गया। उसने सोचा शायद कोई मुर्गी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो वह इधर-उधर गलियों में घूमने लगा।
तभी कुत्ते भौं-भौं करते उसके पीछे पड गए। सियार को जान बचाने के लिए भागना पडा। गलियों में घुसकर उनको छकाने की कोशिश करने लगा पर कुत्ते तो कस्बे की गली-गली से परिचित थे। सियार के पीछे पडे कुत्तों की टोली बढती जा रही थी और सियार के कमजोर शरीर का बल समाप्त होता जा रहा था। सियार भागता हुआ रंगरेजों की बस्ती में आ पहुंचा था। वहां उसे एक घर के सामने एक बडा ड्रम नजर आया। वह जान बचाने के लिए उसी ड्रम में कूद पडा। ड्रम में रंगरेज ने कपडे रंगने के लिए रंग घोल रखा था।
कुत्तों का टोला भौंकता चला गया। सियार सांस रोककर रंग में डूबा रहा। वह केवल सांस लेने के लिए अपनी थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई खतरा नहीं हैं तो वह बाहर निकला। वह रंग में भीग चुका था। जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसके शरीर का सारा रंग हरा हो गया हैं। उस ड्रम में रंगरेज ने हरा रंग घोल रखा था। उसके हरे रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से कांपते देखकर रंगे सियार के दुष्ट शिमाग में एक योजना आई।
रंगे सियार ने डरकर भागते जीवों को आवाज दी “भाइओ, भागो मत मेरी बात सुनो।”
उसकी बात सुनकर सभी जानवर भागते जानवर ठिठके।
उनके ठिठकने का रंगे सियार ने फायदा उठाया और बोला “देखो, देखो मेरा रंग। ऐसा रंगकिसी जानवर का धरती पर हैं? नहीं न। मतलब समझो। भगवान ने मुझे यह खास रंग तुम्हारे पास भेजा हैं। तुम सब जानवरों को बुला लाओ तो मैं भगवान का संदेश सुनाऊं।”
उसकी बातों का सब पर गहरा प्रभाव पडा। वे जाकर जंगल के दूसरे सभी जानवरों को बुलाकर लाए। जब सब आ गए तो रंगा सियार एक ऊंचे पत्थर पर चढकर बोला “वन्य प्राणियो, प्रजापति ब्रह्मा ने मुझे खुद अपने हाथों से इस अलौकिक रंग का प्राणी बनाकर कहा कि संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं हैं। तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना हैं। तुम्हार नाम सम्राट ककुदुम होगा। तीनों लोकों के वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे। अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्र-छाया में निर्भय होकर रहो।”
सभी जानवर वैसे ही सियार के अजीब रंग से चकराए हुए ते। उसकी बातों ने तो जादू का काम किया। शेर, बाघ व चीते की भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत न हूई। देखते ही देखते सारे जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और एक स्वर में बोले “हे बह्मा के दूत, प्राणियों में श्रेष्ठ ककुदुम, हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं। भगवान की इच्छा का पालन करके हमें बडी प्रसन्नता होगी।”
एक बूढे हाथी ने कहा “हे सम्राट, अब हमें बताइए कि हमार क्या कर्तव्य हैं?”
रंगा सियार सम्राट की तरह पंजा उठाकर बोला “तुम्हें अपने सम्राट की खूब सेवा और आदर करना चाहिए। उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए।”
शेर ने सिर झुकाकर कहा “महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करके हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।”
बस, सम्राट ककुदुम बने रंगे सियार के शाही टाठ हो गए। वह राजसी शान से रहने लगा।
कई लोमडियां उसकी सेवा में लगी रहतीं भालू पंखा झुलाता। सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा जाहिर करता, उसकी बलि दी जाती।
जब सियार घूमने निकलता तो हाथी आगे-आगे सूंड उठाकर बिगुल की तरह चिंघाडता चलता। दो शेर उसके दोनों ओर कमांडो बाडी गार्ड की तरह होते।
रोज ककुदुम का दरबार भी लगता। रंगे सियार ने एक चालाकी यह कर दी थी कि सम्राट बनते ही सियारों को शाही आदेश जारी कर उस जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के जावों द्वारा पहचान लिए जाने का खतरा था।
एक दिन सम्राट ककुदुम खूब खा-पीकर अपने शाही मांद में आराम कर रहा था कि बाहर उजाला देखकर उठा। बाहर आया चांदनी रात खिली थी। पास के जंगल में सियारों की टोलियां ‘हू हू SSS’ की बोली बोल रही थी। उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके अदंर के जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद की ओर उठाकर और सियारों के स्वर में मिलाकर ‘हू हू SSS’ करने लगा।
शेर और बाघ ने उसे’हू हू SSS’ करते देख लिया। वे चौंके, बाघ बोला “अर्, यह तो सियार हैं। हमें धोखा देकर सम्राट बना रहा। मारो नीच को।”
शेर और बाघ उसकी ओर लपके और देखते ही देखते उसका तिया-पांचा कर डाला।
सीखः नकलीपन की पोल देर या सबेर जरूर खुलती है।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

शत्रु की सलाह


नदी किनारे एक विशाल पेड था। उस पेड पर बगुलों का बहुत बडा झुंड रहता था। उसी पेड के कोटर में काला नाग रहता था। जब अंडों से बच्चे निकल आते और जब वह कुछ बडे होकर मां-बाप से दूर रहने लगते, तभी वह नाग उन्हें खा जाता था। इस प्रकार वर्षो से काला नाग बगुलों के बच्चे हडपता आ रहा था। बगुले भी वहां से जाने का नाम नहीं लेते थे, क्योंकि वहां नदीमें कछुओं की भरमार थी। कछुओं का नरम मांस बगुलों को बहुत अच्छा लगता था।
इस बार नाग जब एक बच्चे को हडपने लगा तो पिता बगुले की नजर उस पर पड गई। बगुले को पता लग गया कि उसके पहले बच्चों को भी वह नाग खाता रहा होगा। उसे बहुत शोक हुआ। उसे आंसू बहाते एक कछुए ने देखा और पूछा “मामा, क्यों रो रहे हो?”
गम में जीव हर किसी के आगे अपना दुखडा रोने लगता हैं। उसने नाग और अपने मॄत बच्चों के बारे में बताकर कहा “मैं उससे बदला लेना चाहता हूं।”
कछुए ने सोचा “अच्छा तो इस गम में मामा रो रहा हैं। जब यह हमारे बच्चे खा जाते हैं तब तो कुछ ख्याल नहीं आता कि हमें कितना गम होता होगा। तुम सांप से बदला लेना चाहते हो तो हम भी तो तुमसे बदला लेना चाहेंगे।”
बगुला अपने शत्रु को अपना दुख बताकर गलती कर बैटा था। चतुर कछुआ एक तीर से दो शिकार मारने की योजना सोच चुका था। वह बोला “मामा! मैं तुम्हें बदला लेने का बहुत अच्छा उपाय सुझाता हूं।”
बगुले ने अदीर स्वर में पूछा “जल्दी बताओ वह उपाय क्या हैं। मैं तुम्हारा एहसान जीवन भरा नहीं भूलूंगा।’ कछुआ मन ही मन मुस्कुराया और उपाय बताने लगा “यहां से कुछ दूर एक नेवले का बिल हैं। नेवला सांप का घोर शत्रु हैं। नेवलेको मछलिया बहुत प्रिय होती हैं। तुम छोटी-छोटा मछलियां पकडकर नेवले के बिल से सांप के कोटर तक बिछा दोनेवला मछलियां खाता-खाता सांप तक पहुंच जाएगा और उसे समाप्त कर देगा।’ बगुला बोला “तुम जरा मुझे उस नेवले का बिल दिखा दो।’
कचुए ने बगुले को नेवले का बिल दिखा दिया। बगुले ने वैसे ही किया जैसे कचुए ने समझाया ता। नेवला सचमुच मछलियां खाता हुआ कोटर तक पहुंचा। नेवले को देखते ही नाग ने फुंकार छोडी। कुछ ही देर की लडाई में नेवले ने सांप के टुकडे-टुकडे कर दिए। बगुला खुशी से उछल पडा। कछुए ने मन ही मन में कहा “यह तो शुरुआत हैं मूर्ख बगुले। अब मेरा बदला शुरु होगा और तुम सब बगुलों का नाश होगा।”
कछुए का सोचना सही निकला। नेवला नाग को मारने के बाद वहां से नहीं गया। उसे अपने चारों ओर बगुले नजर आए,उसके लिए महिनों के लिए स्वादिष्ट खाना। नेवला उसी कोटर में बस गया, जिसमें नाग रहता था और रोज एक बगुले को अपना शिकार बनाने लगा। इस प्रकार एक-एक करके सारे बगुले मारे गए।
सीखः शत्रु की सलाह में उसका स्वार्थ छिपा होता है।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

शरारती बंदर


एक समय शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण कैया जा रहा था। मंदिर में लकडी का काम बहुत थ इसलिए लकडी चीरने वाले बहुत से मजदूर काम पर लगे हुए थे। यहां-वहां लकडी के लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था। सारे मजदूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पडता था, इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहां कोई नहीं होता था। एक दिन खाने का समय हुआ तो सारे मजदूर काम छोडकर चल दिए। एक लठ्टा आधा चिरा रह गया था। आधे चिरे लठ्टे में मजदूर लकडी का कीला फंसाकर चले गए। ऐसा करने से दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती हैं।
तभी वहां बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें एक शरारती बंदर भी था, जो बिना मतलब चीजों से छेडछाड करता रहता था। पंगे लेना उसकी आदत थी। बंदरों के सरदार ने सबको वहां पडी चीजों से छेडछाड न करने का आदेश दिया। सारे बंदर पेडों की ओर चल दिए, पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह गया और लगा अडंगेबाजी करने।
उसकी नजर अधचिरे लठ्टे पर पडी। बस, वह उसी पर पिल पडा और बीच मेंअडाए गए कीले को देखने लगा। फिर उसने पास पडी आरी को देखा। उसे उठाकर लकडी पर रगडने लगा। उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी पटक दी। उन बंदरो की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ ‘निखट्टू’ था। वह दोबारा लठ्टे के बीच फंसे कीले को देखने लगा।
उसके दिमाग में कौतुहल होने लगा कि इस कीले को लठ्टे के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कीले को पकडकर उसे बाहर निकालने के लिए जोर आजमाईश करने लगा। लठ्टे के बीच फंसाया गया कीला तो दो पाटों के बीच बहुत मजबूती से जकडा गया होता हैं, क्योंकि लठ्टे के दो पाट बहुत मजबूत स्प्रिंग वाले क्लिप की तरह उसे दबाए रहते हैं।
बंदर खूब जोर लगाकर उसे हिलाने की कोशिश करने लगा। कीला जोज्र लगाने पर हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश हो गया।
वह और जोर से खौं-खौं करता कीला सरकाने लगा। इस धींगामुश्ती के बीच बंदर की पूंछ दो पाटों के बीच आ गई थी, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।
उसने उत्साहित होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर खिंचा, लठ्टे के दो चिरे भाग फटाक से क्लिप की तरह जुड गए और बीच में फंस गई बंदर की पूंछ। बंदर चिल्ला उठा।
तभी मजदूर वहां लौटे। उन्हें देखते ही बंदर नी भागने के लिए जोर लगाया तो उसकी पूंछ टूट गई। वह चीखता हुआ टूटी पूंछ लेकर भागा।

सीखः बिना सोचे-समझे कोई काम न करो।