सोमवार, 11 अप्रैल 2016

बुद्धिमान सियार


एक समय की बात हैं कि जंगल में एक शेर के पैर में कांटा चुभ गया। पंजे में जख्म हो गया और शेर के लिए दौडना असंभव हो गया। वह लंगडाकर मुश्किल से चलता। शेर के लिए तो शिकार न करने के लिए दौडना जरुरी होता है। इसलिए वह कई दिन कोई शिकार न कर पाया और भूखों मरने लगा। कहते हैं कि शेर मरा हुआ जानवर नहीं खाता, परन्तु मजबूरी में सब कुछ करना पडता हैं। लंगडा शेर किसी घायल अथवा मरे हुए जानवर की तलाश में जंगल में भटकने लगा। यहां भी किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। कहीं कुछ हाथ नहीं लगा।
धीरे-धीरे पैर घसीटता हुआ वह एक गुफा के पास आ पहुंचा। गुफा गहरी और संकरी थी, ठीक वैसी जैसे जंगली जानवरों के मांद के रुप में काम आती हैं। उसने उसके अंदर झांका मांद खाली थी पर चारो ओर उसे इस बात के प्रमाण नजर आए कि उसमें जानवर का बसेरा हैं। उस समय वह जानवर शायद भोजन की तलाश में बाहर गया हुआ था। शेर चुपचाप दुबककर बैठ गया ताकि उसमें रहने वाला जानवर लौट आए तो वह दबोच ले।
सचमुच उस गुफा में सियार रहता था, जो दिन को बाहर घूमता रहता और रात को लौट आता था। उस दिन भी सूरज डूबने के बाद वह लौट आया। सियार काफी चालाक था। हर समय चौकन्ना रहता था। उसने अपनी गुफा के बाहर किसी बडे जानवर के पैरों के निशान देखे तो चौंका उसे शक हुआ कि कोई शिकारी जीव मांद में उसके शिकार की आस में घात लगाए न बठा हो। उसने अपने शक की पुष्टि के लिए सोच विचार कर एक चाल चली। गुफा के मुहाने से दूर जाकर उसने आवाज दी “गुफा! ओ गुफा।”
गुफा में चुप्पी छायी रही उसने फिर पुकारा “अरी ओ गुफा, तु बोलती क्यों नहीं?”
भीतर शेर दम साधे बैठा था। भूख के मारे पेट कुलबुला रहा था। उसे यही इंतजार था कि कब सियार अंदर आए और वह उसे पेट में पहुंचाए। इसलिए वह उतावला भी हो रहा था। सियार एक बार फिर जोर से बोला “ओ गुफा! रोज तु मेरी पुकार का के जवाब में मुझे अंदर बुलाती हैं। आज चुप क्यों हैं? मैंने पहले ही कह रखा हैं कि जिस दिन तु मुझे नहीं बुलाएगी, उस दिन मैं किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा। अच्छा तो मैं चला।”
यह सुनकर शेर हडबडा गया। उसने सोचा शायद गुफा सचमुच सियार को अंदर बुलाती होगी। यह सोचकर कि कहीं सियार सचमुच न चला जाए, उसने अपनी आवाज बदलकर कहा “सियार राजा, मत जाओ अंदर आओ न। मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी।”
सियार शेर की आवाज पहचान गया और उसकी मूर्खता पर हंसता हुआ वहां से चला गया और फिर लौटकर नहीं आया। मूर्ख शेर उसी गुफा में भूखा-प्यासा मर गया।
सीखः सतर्क व्यक्ति जीवन में कभी मार नहीं खाता।

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

मक्खीचूस गीदड


जंगल मे एक गीदड रहता था था। वह बडा क कंजूस था,क्योंकि वह एक जंगली जीव था इसलिए हम रुपये-पैसों की कंजूसी की बात नझीं कर रहे। वह कंजूसी अपने शिकार को खाने में किया करता था। जितने शिकार से दूसरा गीदड दो दिन काम चलाता, वह उतने ही शिकार को सात दिन तक खींचता। जैसे उसने एक खरगोश का शिकार किया। पहले दिन वह एक ही कान खाता। बाकी बचाकर रखता। दूसरे दिन दूसरा कान खाता। ठीक वैसे जैसे कंजूस व्यक्ति पैसा घिस घिसकर खर्च करता हैं। गीदड अपने पेट की कंजूसी करता। इस चक्कर में प्रायः भूखा रह जाता। इसलिए दुर्बल भी बहुत हो गया था।
एक बार उसे एक मरा हुआ बारहसिंघा हिरण मिला। वह उसे खींचकर अपनी मांद में ले गया। उसने पहले हिरण के सींग खाने का फैसला किया ताकि मांस बचा रहे। कई दिन वह बस सींग चबाता रहा। इस बीच हिरण का मांस सड गया और वह केवल गिद्धों के खाने लायक रह गया। इस प्रकार मक्खीचूस गीदड प्रायः हंसी का पात्र बनता। जब वह बाहर निकलता तो दूसरे जीव उसका मरियल-सा शरीर देखते और कहते “वह देखो, मक्खीचूस जा रहा हैं।
पर वह परवाह न करता। कंजूसों में यह आदत होती ही हैं। कंजूसों की अपने घर में भी खिल्ली उडती हैं, पर वह इसे अनसुना कर देते हैं।
उसी वन में एक शिकारी शिकार की तलाश में एक दिन आया। उसने एक सुअर को देखा और निशाना लगाकर तीर छोडा। तीर जंगली सुअर की कमर को बींधता हुआ शरीर में घुसा। क्रोधित सुअर शिकारी की ओर दौडा और उसने खच से अपने नुकीले दंत शिकारी के पेंट में घोंप दिए। शिकारी ओर शिकार दोनों मर गए।
तभी वहां मक्खीचूस गीदड आ निकला। वह् खुशी से उछल पडा। शिकारी व सुअर के मांस को कम से कम दो महीने चलाना हैं। उसने हिसाब लगाया।
“रोज थोडा-थोडा खाऊंगा।’ वह बोला।
तभी उसकी नजर पास ही पडे धनुष पर पडी। उसने धनुष को सूंघा। धनुष की डोर कोनों पर चमडी की पट्टी से लकडी से बंधी थी। उसने सोचा “आज तो इस चमडी की पट्टी को खाकर ही काम चलाऊंगा। मांस खर्च नहीं करूंगा। पूरा बचा लूंगा।’
ऐसा सोचकर वह धनुष का कोना मुंह में डाल पट्टी काटने लगा। ज्यों ही पट्टी कटी, डोर छूटी और धनुष की लकडी पट से सीधी हो गई। धनुष का कोना चटाक से गीदड के तालू में लगा और उसे चीरता हुआ। उसकी नाक तोडकर बाहर निकला। मख्खीचूस गीदड वहीं मर गया।
सीखः अधिक कंजूसी का परिणाम अच्छा नहीं होता।

सोमवार, 28 मार्च 2016

मित्र की सलाह


एक धोबी का गधा था। वह दिन भर कपडों के गट्ठर इधर से उधर ढोने में लगा रहता। धोबी स्वयं कंजूस और निर्दयी था। अपने गधे के लिए चारे का प्रबंध नहीं करता था। बस रात को चरने के लिए खुला छोड देता । निकट में कोई चरागाह भी नहीं थी। शरीर से गधा बहुत दुर्बल हो गया था।
एक रात उस गधे की मुलाकात एक गीदड से हुई। गीदड ने उससे पूछा “खिए महाशय, आप इतने कमजोर क्यों हैं?”
गधे ने दुखी स्वर में बताया कि कैसे उसे दिन भर काम करना पडता हैं। खाने को कुछ नहीं दिया जाता। रात को अंधेरे में इधर-उधर मुंह मारना पडता हैं।
गीदड बोला “तो समझो अब आपकी भुखमरी के दिन गए। यहां पास में ही एक बडा सब्जियों का बाग हैं। वहां तरह-तरह की सब्जियां उगी हुई हैं। खीरे, ककडियां, तोरी, गाजर, मूली, शलजम और बैगनों की बहार हैं। मैंने बाड तोडकर एक जगह अंदर घुसने का गुप्त मार्ग बना रखा हैं। बस वहां से हर रात अंदर घुसकर छककर खाता हूं और सेहत बना रहा हूं। तुम भी मेरे साथ आया करो।” लार टपकाता गधा गीदड के साथ हो गया।
बाग में घुसकर गधे ने महीनों के बाद पहली बार भरपेट खाना खाया। दोनों रात भर बाग में ही रहे और पौ फटने से पहले गीदड जंगल की ओर चला गया और गधा अपने धोबी के पास आ गया।
उसके बाद वे रोज रात को एक जगह मिलते। बाग में घुसते और जी भरकर खाते। धीरे-धीरे गधे का शरीर भरने लगा। उसके बालों में चमक आने लगी और चाल में मस्ती आ गई। वह भुखमरी के दिन बिल्कुल भूल गया। एक रात खूब खाने के बाद गधे की तबीयत अच्छी तरह हरी हो गई। वह झूमने लगा और अपना मुंह ऊपर उठाकर कान फडफडाने लगा। गीदड ने चिंतित होकर पूछा “मित्र, यह क्या कर रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक हैं?”
गधा आंखे बंद करके मस्त स्वर में बोला “मेरा दिल गाने का कर रहा हैं। अच्छा भोजन करने के बाद गाना चाहिए। सोच रहा हूं कि ढैंचू राग गाऊं।”
गीदड ने तुरंत चेतावनी दी “न-न, ऐसा न करना गधे भाई। गाने-वाने का चक्कर मत चलाओ। यह मत भूलो कि हम दोनों यहां चोरी कर रहे हैं। मुसीबत को न्यौता मत दो।”
गधे ने टेढी नजर से गीदड को देखा और बोला “गीदड भाई, तुम जंगली के जंगली रहे। संगीत के बारे में तुम क्या जानो?”
गीदड ने हाथ जोडे “मैं संगीत के बारे में कुछ नहीं जानता। केवल अपनी जान बचाना जानता हूं। तुम अपना बेसुरा राग अलापने की जिद छोडो, उसी में हम दोनों की भलाई हैं।”
गधे ने गीदड की बात का बुरा मानकर हवा में दुलत्ती चलाई और शिकायत करने लगा “तुमने मेरे राग को बेसुरा कहकर मेरी बेइज्जती की हैं। हम गधे शुद्ध शास्त्रीय लय में रेंकते हैं। वह मूर्खों की समझ में नहीं आ सकता।”
गीदड बोला “गधे भाई, मैं मूर्ख जंगली सही, पर एक मित्र के नाते मेरी सलाह मानो। अपना मुंह मत खोलो। बाग के चौकीदार जाग जाएंगे।”
गधा हंसा “अरे मूर्ख गीदड! मेरा राग सुनकर बाग के चौकीदार तो क्या, बाग का मालिक भी फूलों का हार लेकर आएगा और मेरे गले में डालेगा।”
गीदड ने चतुराई से काम लिया और हाथ जोडकर बोला “गधे भाई, मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया हैं। तुम महान गायक हो। मैं मूर्ख गीदड भी तुमहारे गले में डालने के लिए फूलों की माला लाना चाहता हूं।मेरे जाने के दस मिनट बाद ही तुम गाना शुरु करना ताकि मैं गायन समाप्त होने तक फूल मालाएं लेकर लौट सकूं।”
गधे ने गर्व से सहमति में सिर हिलाया। गीदड वहां से सीधा जंगल की ओर भाग गया। गधे ने उसके जाने के कुछ समय बाद मस्त होकर रेंकना शुरु किया। उसके रेंकने की आवाज सुनते ही बाग के चौकीदार जाग गए और उसी ओर लट्ठ लेकर दौडे, जिधर से रेंकने की आवाज आ रही थी। वहां पहुंचते ही गधे को देखकर चौकीदार बोला “यही हैं वह दुष्ट गधा, जो हमारा बाग चर रहा था।’
बस सारे चौकीदार डंडों के साथ गधे पर पिल पडे। कुछ ही देर में गधा पिट-पिटकर अधमरा गिर पडा।
सीखः अपने शुभचिन्तकों और हितैषियों की नेक सलाह न मानने का परिणाम बुरा होता हैं।