शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

Some beautiful answers and way of thinking of .....

*What Is Poison ? ? ?*
He Replied With A Beautiful Answer - *AnyThing Which Is More Than Our Necessity Is Poison.* It May Be Power, Wealth, Hunger, Ego, Greed, Laziness, Love, Ambition, Hate Or AnyThing.

*What Is Fear ? ? ?*
Answer: *Non Acceptance Of Uncertainty.*
If We Accept That Uncertainty, It Becomes Adventure.

*What Is Envy ?*
Answer: *Non Acceptance Of Good In Others,*.. If We Accept That Good, It Becomes Inspiration.

*What Is Anger ? ? ?*
Answer: *Non Acceptance Of Things Which Are Beyond Our Control.*
If We Accept, It Becomes Tolerance.

*What Is Hatred ? ? ?*
Answer: *Non Acceptance Of Person As He Is.* If We *Accept any Person Unconditionally, It Becomes Love.*

रविवार, 11 दिसंबर 2016

ईश्वरलाभ

  एक गांव में एक लकडहारा रहता था. वह रोज जंगल जाकर लकडी काटता और उसे बाजार में बेच देता. किन्तु कुछ समय से उसकी आमदनी घटती चली जा रही थी.

      उसकी मुलाकात एक संन्यासी से हुई. लकडहारे ने संन्यासी से विनती की- महाराज आमदनी घटने से परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया है. दरिद्रता दूर करने का उपाय बताएं.

        उस सन्यासी ने लकडहारे को कहा- जा आगे जा. सन्यासी का आदेश मानकर लकड़हारा आगे बढ़ता गया.

      चलते-चलते उसे कुछ देर बाद उसे चंदन का वन मिला. वहां की चंदन की लकडी बेच-बेच कर लकड़हारा अच्छा-खासा धनी हो गया.

       दिन सुख से कटने लगे तो एक दिन लकडहारे के मन में विचार आया कि संन्यासी ने तो मुझे आगे जा कहा था.
मैं फिर मात्र चंदन के वन से ही संतोष क्यों कर रहा हूं. यहीं फंसे रहने से क्या लाभ. मुझे तो और आगे जाना चाहिए. यह विचार करते-करते वह और आगे निकलता गया. आगे उसे एक सोने की खदान दिखाई दी. उसकी आंखें फटी रह गईं.

       सोना पाकर लकडहारा पहले से कई गुना अधिक धनवान हो गया. कोई कमी न रही उसे धन-दौलत की लेकिन उसमें और पाने की इच्छा पैदा हुई. कुछ दिनों तक सोना बेचने के बाद लकडहारा और आगे चल पडा. अबकी बार उसे हीरे-माणिक और मोती के भंडार मिल गए.

       उसके आनंद की कोई सीमा न थी. धन-दौलत के भंडार उसके कदमों के नीचे थे. जीवन बहुत सुखी और समृध्द हो गया.

     किंतु वह फिर सोचने लगा- उस सन्यासी को जब इतनी सारी दौलत का पता था तो फिर उसने स्वयं क्यों नहीं इनका उपभोग किया. यह प्रश्न उसके दिमाग में घूमता रहा. बार-बार घूमता रहा. उसने बहुत सोचा लेकिन लकडहारे को उत्तर नहीं मिला.

      तब वह फिर उस सन्यासी के पास गया और जाकर बोला- महाराज आप ने मुझे आगे जाने को कहा और धन-संपत्ति का पता दिया, लेकिन आप भला इस संपत्ति का आनंद क्यों नहीं उठाते?

      इसपर संन्यासी ने सहज उत्तर दिया. वह बोले ”भाई तेरा कहना उचित है, लेकिन तू जहां से रूक गया उसके और आगे जाने से ऐसी खास चीज हाथ लगती है जिसकी तुलना में ये हीरे और माणिक केवल मिट्टी और कंकड़ जैसे महसूस होते हैं.

      मैं उसी खास और सबसे मूल्यवान चीज की तलाश में मगन हूं. उस मूल्यवान चीज का नाम है- ईश्वरलाभ.

सन्यासी की गूढ़ बात से लकडहारे के मन में उतर गई. वह समझ गया था कि कोई भी दौलत ईश्वर के बिना पूर्ण नही होती.

      संपत्ति मन को क्षणिक सुख दे सकते हैं शाश्वत सुख नहीं. संपत्ति के साथ आती है उसे सहेजकर रखने की व्यथा. इस व्यथा का निदान होता है ईश्वर लाभ की संपदा के हाथ लगने के बाद.