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रविवार, 20 सितंबर 2015

अगर कोई समस्या हो ही न, तो फिर समाधान कैसा?


अंगदेश के महामंत्री युतिसेन की मृत्यु हो गई। उस राज्य में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को ही मंत्री बनाने का नियम था। इसके लिए पूरे राज्य में परीक्षाएं हुईं और तीन सबसे ज्यादा बुद्धिमान युवक चुने गए। उन्हें राजधानी बुलाया गया। तीनों युवक मुख्य परीक्षा से एक दिन पहले राजधानी पहुंचे।
उन्हें एक कक्ष में ठहराया गया। कक्ष में प्रवेश करते ही एक युवक सीधा अपने बिस्तर तक गया और सो गया। शेष दोनों युवकों ने समझा कि शायद उसने परीक्षा देने का ख्याल छोड़ दिया है। वे दोनों रात भर तैयारी करते रहे।
अगली सुबह तीनों एक साथ राजमहल पहुंचे। वहां उन्हें परीक्षा की शर्त बताई गई। असल में, परीक्षा के लिए एक कक्ष बनाया गया था। उस कक्ष में एक ताला लगा था। उस ताले की कोई चाबी नहीं थी। उस पर गणित के कुछ अंक लिखे हुए थे।
शर्त यह थी कि जो युवक उन अंकों को हल कर लेगा, वह ताला खोल लेगा। उन तीनों युवकों को उस कक्ष में बंद कर दिया गया, और कहा गया कि जो सबसे पहले दरवाजा खोलकर बाहर आएगा, वही महामंत्री बनेगा।
तीनों भीतर गए। जो युवक रात भर सोया रहा था, वह फिर आंखें बंद करके एक कोने में बैठ गया। बाकी दोनों ने अपने कपड़ों में छिपाकर लाई किताबें निकालीं और उन अंकों के हल तलाशने लगे। तीसरा आदमी कुछ देर बाद चुपचाप उठा और दरवाजे की तरफ चला। उसने दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा सिर्फ अटका हुआ था; वहां ताला ही नहीं था। वह तुरंत बाहर निकल गया!
राजा ने उसे मंत्री बनाते हुए कहा, बुद्धिमान वह है, जो पहले यह देखेगा कि दरवाजा बंद है भी या नहीं। किसी सवाल का हल निकालने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सवाल है भी या नहीं? अगर कोई समस्या हो ही न, तो फिर समाधान कैसा?