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सोमवार, 7 मार्च 2016

मूर्ख को सीख


एक जंगल में एक पेड पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कडाके की ठंड पड रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन चार बंदरो ने उसी पेड के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला “कहीं से आग तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती हैं।”
दूसरे बंदर ने सुझाया “देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पडी हैं। इन्हें इकट्ठा कर हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।”
बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उडते एक जुगनू पर पडी और वह उछल पडा। उधर ही दौडता हुआ चिल्लाने लगा “देखो, हवा में चिंगारी उड रही हैं। इसे पकडकर ढेर के नीचे रखकर फूंक मारने से आग सुलग जाएगी।”
“हां हां!” कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौडने लगे। पेड पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थे। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली ” बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू हैं।”
एक बंदर क्रोध से गौरैया की देखकर गुर्राया “मूर्ख चिडिया, चुपचाप घोंसले में दुबकी रह।हमें सिखाने चली हैं।”
इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने।
गौरैया ने सलाह दी “भाइयो! आप लोग गलती कर रहें हैं। जुगनू से आग नहीं सुलगेगी। दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग सुलगाइए।”
बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी “भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकडियों को आपस में रगडकर देखिए।”
सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढा और उसने गौरैया पकडकर जोर से पेड के तने पर मारा। गौरैया फडफडाती हुई नीचे गिरी और मर गई।
सीखः मूर्खों को सीख देने का कोई लाभ नहीं होता। उल्टे सीख देने वाला को ही पछताना पडता हैं।

रविवार, 6 नवंबर 2011

एक और एक ग्यारह





एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नेहीं समझता था।
बनगिरी में ही एक पेड पर एक चिडिया व चिडे का छोटा-सा सुखी संसार था। चिडिया अंडो पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा।
चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोठवी आई। वह चिडिया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली “इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।”
चिडिया ने निराशा दिखाई “हमें छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?”
कठफोडवी ने समझाया “एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।”
“कैसे?” चिडिया ने पूछा।
“मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।” चिडिया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया “यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।”
अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला “आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।”
ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला “दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।”
मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।
कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।
तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह् आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।
चिडिया कॄतज्ञ स्वर में मेढक से बोली “बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।”
मेढक ने कहा “आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।”
एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।
मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेढक टर्राने लगे।
मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता ता कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पडा।
टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।
जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

सीखः
1.एकता में बल हैं।
2.अहंकारी का देर या सबेर अंत होता ही हैं।